उदयपुर । जिले में पहली बार आईवीएफ टेस्ट ट्यूब तकनीक से दिव्यांग दंपती को जुड़वा बच्चों की खुशी मिली है। यह पहला मौका होगा जब इस तकनीक से दिव्यांग महिला को जुड़वा बच्चे हुए है। महिला और उनके दोनों बच्चों का इलाज सुमेरपुर के निजी अस्पताल समर्पण आईवीएफ सेंटर में चल रहा था। जानकारी के अनुसार जालोर निवासी दिव्यांग दंपती दिनेश उसकी पत्नी दरिया निसंतान थे। इस दौरान उन्होंने अस्पताल में चैकअप करवाया। हॉस्पिटल की डॉ. अनिता राजपुरोहित की ओर से आईवीएफ तकनीक से इलाज शुरू किया। इस तकनीक के माध्यम से डॉ. अनिता राजपुरोहित समेत उनके टीम के डॉ. नीरज त्यागी डॉ. स्टेफी रोड्रिक्स ने महिला की डिलेवरी करवाई जिसमें उसने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।
अस्पताल प्रबंधन का दावा- जिले में पहली बार आईवीएफ तकनीक का उपयोग
अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि पाली समेत, जालोर सिरोही जिले में पहली बार आईवीएफ तकनीक का उपयोग कर जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है। राकेश राजपुरोहित ने बताया कि अस्पताल में जापान से आईवीएफ के लिए अलग से मशीन मंगाई गई है। जो जोधपुर के बाद यहीं पर उपलब्ध है।
हमारे देश की पहली परखनली शिशु दुर्गा
भारतमें पहली बार डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था। इनके द्वारा तैयार की गई परखनली शिशु दुर्गा थी, जो विश्व की दूसरी परखनली शिशु थी। आज यह तकनीक निसंतान दंपत्तियों के लिए आशा की नई किरण है।
तीन चरणों में होता है इलाज, पहले डेढ़ महीने तक दंपतियों की होती है जांच
स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. अनिता राजपुरोहित ने बताया कि यह तकनीक उनके लिए वरदान है जो पिछले कई सालों से संतान सुख से वंचित है उन्होंने बताया कि इसका पूरा इलाज तीन चरणों में होता है। जिसे मेडिकल भाषा में थ्री साइकल ट्रीटमेंट कहते हैं। इससे पहले डेढ़ महीने तक दंपतियों में अलग-अलग जांचे होती है। जिस महिला के जुड़वां बच्चे हुए हैं वह अब स्वस्थ है। दोनों बच्चों का विशेषज्ञों की देखरेख में इलाज चल रहा है।
क्या है इन विट्रो फर्टिलाइजेशन
इनविट्रोफर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) एक तकनीक है, जिसमें महिलाओं में कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। यह बांझपन दूर करने की कारगर तकनीक मानी जाती है। इस प्रक्रिया में किसी महिला के अंडाशय से अंडे को अलग कर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है।
विश्वमें 38 साल पहले शुरू हुई तकनीक
इसप्रक्रिया का दुनिया में सबसे पहला प्रयोग संयुक्त राजशाही में पैट्रिक स्टेपो और रॉबर्ट एडवर्डस ने किया था। उनके इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का नाम लुइस ब्राउन था। उसका जन्म 25 जुलाई, 1978 को मैनचेस्टर में हुआ था।
जिले में पहली बार हुआ
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